
मुस्लिम इलाको मे आप को स्कूल कम और पुलिस चौकिया ज़्यादा मिलेंगी !!
रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट मे मुसलमानो और ईसाइयो को रोजगार और शिक्षा मे 15% आरक्षण देने की सिफारिश किया था, उसके बाद सच्चर आयोग ने स्थिति और साफ कर दिया, शिक्षा मे यह समुदाय राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे है, 25% से ज़्यादा 6-14 वर्ष के बच्चे या तो स्कूल जाते नहीं या स्कूल छोड़ देते है ! कालिज मे स्थिति यह है की 50 स्टूडेंट मे 1 मुस्ल
रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट मे मुसलमानो और ईसाइयो को रोजगार और शिक्षा मे 15% आरक्षण देने की सिफारिश किया था, उसके बाद सच्चर आयोग ने स्थिति और साफ कर दिया, शिक्षा मे यह समुदाय राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे है, 25% से ज़्यादा 6-14 वर्ष के बच्चे या तो स्कूल जाते नहीं या स्कूल छोड़ देते है ! कालिज मे स्थिति यह है की 50 स्टूडेंट मे 1 मुस्ल
िम होता है यानि की 1:50 का अनुपात है ! मुसलमानो मे शिक्षा के प्रति उदासीनता के दो प्रमुख कारण है :
अब क्यो की यह अशिक्षित होते है और एक घुटन भरे महोल मे रहते है, यह पैसा कमाने की लालच मे आपराधिक गतिविधियो मे शामिल हो कर अपनी बर्बादी के बाकी समान भी कर लेते है !! यही कारण है की जेलो मे इनकी संख्या पहले नंबर पर है
अधिकांश मुस्लिम्स आथिक रूप से इतने मज़बूत नहीं होते की बच्चो को स्कूल भेज सकते वह उनको छोटे मोटे कामो मे लगा देते है ताकि आय का एक साधन बन जाए, यही कारण है की इस समुदाय के लोग कारीगर आदि के कामो मे ज़्यादा दिखाई देते है !!
आज़ादी के वक्त मुसलमानो की अच्छी खासी संख्या सरकारी नौकरियो मे थी, परंतु सरकार की तुष्टीकरण नीति के तहत यह साल दर साल कम होती गयी और 2006 की एक रिपोर्ट के अनुसार यह 5% से भी कम है इस मे भी 98.7% निम्न श्रेरी के पद पर है !!
केवल 3% मुस्लिम बच्चे ही मदरसो का रुख करते है वह भी वही जिनके घरो मे इतना पैसा नहीं होता है की स्कूल भेज सके, कोई भी सम्पन्न परिवार अपने बच्चो को मदरसे पढ़ने नहीं भेजता है, इस के अलावा सरकार अन्य स्कूलो और शिक्षा योजनाओ पर भी लाखो रुपया खर्च करती है !!
यदि जैसा प्रचार किया जाता है उसका आधा भी हक़ीक़त होता तो शायद मुसलमानो या अल्पसंखयकों की यह स्थिति न होती !!
अब क्यो की यह अशिक्षित होते है और एक घुटन भरे महोल मे रहते है, यह पैसा कमाने की लालच मे आपराधिक गतिविधियो मे शामिल हो कर अपनी बर्बादी के बाकी समान भी कर लेते है !! यही कारण है की जेलो मे इनकी संख्या पहले नंबर पर है
अधिकांश मुस्लिम्स आथिक रूप से इतने मज़बूत नहीं होते की बच्चो को स्कूल भेज सकते वह उनको छोटे मोटे कामो मे लगा देते है ताकि आय का एक साधन बन जाए, यही कारण है की इस समुदाय के लोग कारीगर आदि के कामो मे ज़्यादा दिखाई देते है !!
आज़ादी के वक्त मुसलमानो की अच्छी खासी संख्या सरकारी नौकरियो मे थी, परंतु सरकार की तुष्टीकरण नीति के तहत यह साल दर साल कम होती गयी और 2006 की एक रिपोर्ट के अनुसार यह 5% से भी कम है इस मे भी 98.7% निम्न श्रेरी के पद पर है !!
केवल 3% मुस्लिम बच्चे ही मदरसो का रुख करते है वह भी वही जिनके घरो मे इतना पैसा नहीं होता है की स्कूल भेज सके, कोई भी सम्पन्न परिवार अपने बच्चो को मदरसे पढ़ने नहीं भेजता है, इस के अलावा सरकार अन्य स्कूलो और शिक्षा योजनाओ पर भी लाखो रुपया खर्च करती है !!
यदि जैसा प्रचार किया जाता है उसका आधा भी हक़ीक़त होता तो शायद मुसलमानो या अल्पसंखयकों की यह स्थिति न होती !!
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