
'खान' होने पर प्रताड़ित न करें: सुप्रीम कोर्ट
सर्वोच्च अदालत ने गुजरात में आतंकवाद के आरोप में दोषी करार दिए 11 लोगों को बरी करते हुए अपने एक अहम फैसले में फिल्म ‘माय नेम इज खान' फिल्म का भी जिक्र किया. ये लोग 18 साल से जेल में थे.
वर्ष 2002 में टाडा (आतंकवाद और विध्वंसकारी गतिविधि रोकथाम कानून) की विशेष अदालत ने इन लोगों को 1994 में गुजरात के अहमदाबाद में भगवान जगन्ननाथ पुरी यात्रा के दौरान कथित तौर पर सांप्रदायिक हिंसा की साजिश रचने का दोषी करार दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “जिला पुलिस अधीक्षक, महानिरीक्षक और अन्य अधिकारियों को ये जिम्मेदारी दी गई है कि वो कानून का किसी भी तरह दुरुपयोग न होने दें और इस बात को सुनिश्चित किया जाए कि किसी निर्दोष व्यक्ति को ये नहीं लगना चाहिए कि उसे ‘माय नेम इज खान बट आई एम नॉट टेरेरिस्ट’ की वजह से सताया जा रहा है.”
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
जांच एजेंसियों पर सवाल
खुद जांच एजेंसियों का रवैया और तौर तरीके भी मुसलमानों के शक और संदेह को बढ़ावा देते रहे हैं. पुलिस और खुफिया अधिकारियों में पेशेवर क्षमताओं की कमी और असंवेदनशील तौर तरीके के कारण बहुत से बेकसूर नौजवानों की जिंदगियां हमेशा के लिए तबाह हो गई हैं.